મૂળ વાત તો કવિને અજવાળા સુધી જવું છે. પેલો મંત્ર જે પરમ તેજની વાત કરે છે, तमसो मा ज्योतिर्गमय એનું કવિને સતત ભાન છે. એટલે જુઓ જે અજવાળાની ક્ષણની વાત કરે છે, એ દીવાના પ્રતીકને અહીં કેવી રીતે પ્રયોજે છે…
હશે અંતિમ સમય હું તોય ફેલાવીશ અજવાળું,
દીવો એવો નથી કે ફૂંક મારો ને ઠરી જાઉં…
– ભાગ્યેશ જહા
कवि अपनी माँ से अविभाज्य अलौकिक कड़ी से आज भी जुड़े हैं । सो उनकी सर्जनी में माँ की तड़प भी श्याम और मीरा जैसी पाई जाती है ।
खोयुं छे ए फरी मांगवा मले तो,
मानी ए ममता पाछी निर्मल मागी लऊं ।
(गुजराती)
माँगने की गर इजाज़त हो जिसे खो डाली है,
माँ की वो बेलोस ममता फिर अटल मैं माँग लूँ ।
(भावानुवाद)
– डॉ. सतीन देसाई परवेज़ दीप्ति ‘गुरु’
अब उस शेर की तरफ़ रुख़ कीजिए जो अपने- आप में हासिले-ग़ज़ल शेर है । उसको हिंदुस्तानी चोला पहनाने वास्ते खूब तंग शर्त होने के बावजूद कमाल काम निभाया गया है । नीतिन जी और सतीन जी दोनों को बधाई तो ढ़ेर सारी देनी है । परंतु पहले नीतिन जी का गुजराती शेर पढ़िए,
રંકની આંખોની થોડી વેદના વાંચી જુઓ.
કોઈ વેળા અશ્રુભીની વારતા વાંચી જુઓ.
अब सतीन जी की क़लम से हुआ इसका हिंदुस्तानी भेष भी पेशे-नज़र है, गौर फ़रमाइए…..
‘दीन की आँखो के दर्दो- ग़म ज़रा पढ़ के बता।
तरबतर आँसू से हो वो ही कथा पढ़ के बता ।।’
– डॉ. अंकुर देसाई
Be the first to review “Guftagoo-E-Gazal”
You must be logged in to post a review.