कार्पोरेट जगत से जुड़ा अमन अपनी कंपनी और अपने लिए धन-संपदा जुटाने में व्यस्त है। इसी सिलसिले में वह एक अनुपस्थित अभिभावक, गैर भरोसेमंद जीवनसाथी और एक असंतुष्ट आत्मा बन कर रह जाता है। खुशी पाने की कोशिश में ही उसकी मुलाकात अपनी एक पुरानी दोस्त सयानी से होती है। वह उसे उसके मेंटर राहुल से मिलवाती है। इस तरह, वह उन सात पुलों की यात्रा पर निकल पड़ता है, जो उसे उसकी मंज़िल की ओर ले जा सकते हैं।
क्या वह ऐसा करने के लिए तैयार है?
क्या वह उसे पा लेगा, जिसे दिन–रात खोज रहा है?
कथात्मक शैली में लिखी गई कार्पोरेट साधु, जीवन से हारे हुए एक मैनेजर की संतुष्टि और प्रज्ञा की ओर जीवन यात्रा का ब्यौरा है। यह उपन्यास विभिन्न क्षेत्रों की परिस्थितियों के आधार पर एक ऐसा संपूर्ण जीवन जीने के उपाय सुझाता है जो आंतरिक शांति और सुख के साथ-साथ पेशेवर जीवन में उपलब्धि हासिल करने का माध्यम भी बन सकते हैं।
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